करगहर में जदयू की नई रणनीति: दिनेश राय को मैदान में उतारने की तैयारी, जातीय समीकरण व छवि पर दांव
2025 के बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी बिसात बिछनी शुरू हो गई है। करगहर विधानसभा सीट जदयू के लिए प्रतिष्ठा की सीट मानी जाती है, जिसे 2020 में कांग्रेस ने अप्रत्याशित रूप से निकाल लिया था। हार की समीक्षा के बाद इस बार जेडीयू नेतृत्व फूंक–फूंक कर कदम रख रहा है। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों की मानें तो इस बार टिकट पूर्व विधायक वशिष्ठ सिंह को नहीं बल्कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेहद भरोसेमंद रहे पूर्व प्रशासनिक अधिकारी दिनेश राय को दिए जाने पर शीर्ष स्तर पर सहमति बन चुकी है।
दिनेश राय ने मुख्यमंत्री के आदेश पर स्वैच्छिक सेवानिवृति लेकर सीधे राजनीति में कदम रखा है। वे लंबे समय तक मुख्यमंत्री कार्यालय में उप सचिव के तौर पर कार्य करते रहे हैं। साफ–सुथरी छवि, प्रशासनिक अनुभव और ‘नीतीश के गुड बुक’ में होना— ये गुण उन्हें बाकी दावेदारों पर भारी बनाते हैं। पार्टी को उम्मीद है कि राय न सिर्फ सीट को वापस ला सकते हैं बल्कि जदयू की ‘सुसाशन’ वाली छवि को भी मजबूत करेंगे।
जातीय समीकरण में फिट हैं राय
करगहर का सामाजिक तानाबाना जदयू के परंपरागत सामाजिक समीकरण को साधने वाला रहा है। यहां कुर्मी वोटरों की निर्णायक भूमिका है, इसके बाद ब्राह्मण, राजपूत, कुशवाहा, मुस्लिम और अन्य अति पिछड़ा वर्ग संख्या में प्रभावी हैं। दिनेश राय खुद कुर्मी समुदाय से आते हैं और इस लिहाज से नीतीश कुमार की सोशल इंजीनियरिंग का स्वाभाविक विस्तार माने जा रहे हैं। पार्टी नेतृत्व मानता है कि राय न सिर्फ कुर्मी मतों को एकजुट रखेंगे बल्कि अपनी स्वच्छ प्रशासनिक छवि के बूते सभी वर्गों में स्वीकार्यता बनाने में सक्षम होंगे।
वशिष्ठ सिंह साइडलाइन, लेकिन कोशिश जारी
पूर्व विधायक वशिष्ठ सिंह टिकट के प्रबल दावेदार माने जा रहे थे, लेकिन दिनेश राय की एंट्री के बाद उनकी सक्रियता पार्टी के दूसरे कद्दावर नेता अशोक चौधरी के इर्द-गिर्द बढ़ गई है। वे अंतिम समय तक मेहनत कर रहे हैं, लेकिन सूत्र बताते हैं कि टिकट देने का अंतिम निर्णय खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार करेंगे और वर्तमान परिस्थितियों में दिनेश राय ही उनकी पहली पसंद बने हुए हैं।
2025 में होगा दिलचस्प मुकाबला
2020 में कांग्रेस ने इस सीट पर जीत दर्ज कर जदयू को बड़ा झटका दिया था। इस बार जदयू किसी भी मूल्य पर यह सीट वापस हासिल करना चाहती है। साफ–सुथरी छवि, जातीय समीकरण और हाईकमान के भरोसे के चलते दिनेश राय को चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी लगभग फाइनल मानी जा रही है। यदि ऐसा होता है तो करगहर की लड़ाई इस बार और दिलचस्प हो जाएगी, जहां एक ओर कांग्रेस अपने तंत्र और संगठनात्मक पकड़ के भरोसे मैदान में उतरेगी, वहीं जदयू प्रशासनिक अनुभव के साथ ‘ईमानदार और विजयी चेहरा’ पेश करने की रणनीति पर काम करेगी।करगहर सीट पर जदयू ने इस बार कोई जोखिम मोल न लेने का निश्चय किया है। दिनेश राय के नाम पर दांव लगाकर नीतीश कुमार एक साथ संगठन, प्रशासन और सामाजिक समीकरण तीनों को साधने की कोशिश कर रहे हैं। अब देखना होगा कि कांग्रेस 2020 की सफलता को दोहरा पाती है या जदयू अपनी सीट की वापसी सुनिश्चित करती है।
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