बिहार की राजनीति में सीटों की साझेदारी को लेकर अक्सर गुप्त मंथन होता है, लेकिन इस बार सोनपुर विधानसभा सीट को लेकर एक बड़ा संकेत सामने आया है। दो बार लगातार हार का स्वाद चख चुकी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस बार सोनपुर सीट जनता दल यूनाइटेड (जदयू) को सौंप दी है। यह कदम न केवल जमीनी राजनीतिक समीकरण का इशारा करता है, बल्कि इस क्षेत्र में जदयू की बढ़ती पकड़ और भाजपा की सधी हुई रणनीति को भी दर्शाता है।
सूत्रों के अनुसार, जदयू ने इस सीट से अपने प्रदेश सचिव और विधानसभा प्रभारी आचार्य डॉ. राहुल परमार के नाम पर लगभग मुहर लगा दी है। डॉ. परमार लंबे समय से सोनपुर में सक्रिय हैं और संगठन को पंचायत और गांव स्तर तक ले जाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई है। यही कारण है कि पार्टी नेतृत्व उन्हें एक "लोकल, लोकप्रिय और लड़ाकू" प्रत्याशी के तौर पर देख रहा है।
भाजपा की रणनीतिक 'बैकफुट'
2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में सोनपुर सीट भाजपा के खाते में रही, लेकिन दोनों बार उसे पराजय का सामना करना पड़ा। इस बार सीटों के बंटवारे में भाजपा ने चुपचाप यह सीट जदयू को सौंप दी — जो यह दर्शाता है कि पार्टी अब यहां “सेफ गेम” खेलना चाहती है। रणनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो भाजपा जदयू के मजबूत उम्मीदवार को समर्थन देकर समग्र गठबंधन की जीत सुनिश्चित करना चाहती है।
डॉ. परमार: संगठन से लेकर समाज तक प्रभावशाली उपस्थिति
आचार्य डॉ. राहुल परमार सिर्फ एक राजनीतिक पदाधिकारी नहीं हैं, बल्कि वे एक विचारशील लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी चर्चित हैं। उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सुशासन मॉडल पर कई शोधपूर्ण पुस्तकें लिखी हैं, जो राजनीतिक समझ और नीति-निर्माण में उनकी गहरी रुचि को दर्शाती हैं।
उनकी क्षेत्रीय सक्रियता ने उन्हें सोनपुर में एक भरोसेमंद और मिलनसार नेता के रूप में स्थापित किया है। गांवों में जदयू की शाखाओं को मजबूत करने से लेकर युवाओं और महिलाओं के बीच संवाद कायम करने तक, डॉ. परमार की कार्यशैली उन्हें अन्य नेताओं से अलग बनाती है।
क्या राहुल परमार बनेंगे गेमचेंजर?
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो जदयू ने सोनपुर में जिस तरह से जमीन पर पकड़ बनाई है और भाजपा ने जिस तरह से इस सीट से हटकर मौन सहमति दी है, वह साफ संकेत है कि इस बार गठबंधन अपने उम्मीदवार को लेकर कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता।
डॉ. राहुल परमार यदि उम्मीदवार बनते हैं तो न केवल विपक्ष के लिए चुनौती पेश करेंगे, बल्कि यह संदेश भी देंगे कि जदयू अब सिर्फ सत्ता की पार्टी नहीं, बल्कि ज़मीनी संगठन वाली पार्टी भी है।
निष्कर्ष
सोनपुर की सियासत इस बार दिलचस्प मोड़ पर है। भाजपा की बैकफुट रणनीति और जदयू की फ्रंटफुट पर आक्रामक तैयारी से यह स्पष्ट है कि आगामी चुनाव में यह सीट गठबंधन के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई बन सकती है। और आचार्य डॉ. राहुल परमार इसमें निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।
0 Comments