एनडीए को जमीनी ताकत देने वाला रणनीतिकार
2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को सारण में मिली जीत के पीछे एकमा जैसे क्षेत्रों की भूमिका अहम रही, और इसमें कामेश्वर सिंह मुन्ना की रणनीति, बूथ प्रबंधन और कार्यकर्ता समन्वय सबसे अधिक प्रभावशाली साबित हुए। उन्होंने सिर्फ भाजपा प्रत्याशी जनार्दन सिंह सिग्रीवाल को बढ़त दिलाई, बल्कि एकमा में एनडीए के प्रति जनसमर्थन को भी उर्जावान बनाए रखा।इसके विपरीत, पूर्व विधायक मनोरंजन सिंह उर्फ धूमल के कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार ने एनडीए की छवि को नुकसान पहुँचाया। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या पार्टी फिर से उन्हीं पुराने चेहरों पर दांव लगाएगी, या जनता की स्पष्ट पसंद को महत्व देगी?
जातीय संतुलन में सर्वस्वीकार्य चेहरा
एकमा का जातीय समीकरण जितना जटिल है, कामेश्वर सिंह मुन्ना उतने ही सरल और सर्वमान्य नेता के रूप में उभरते हैं। जहां राजपूत मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं, वहीं यादव, कुशवाहा और अन्य पिछड़ी जातियों का भी मजबूत प्रभाव है। मुन्ना इन वर्गों के बीच सामाजिक समरसता के प्रतीक बन चुके हैं—उनकी स्वीकार्यता जाति की दीवारों को लांघ चुकी है।
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एनडीए के लिए अग्निपरीक्षा: टिकट या तकरार?
एनडीए के भीतर टिकट को लेकर अंदरूनी खींचतान चल रही है, लेकिन इस बार लड़ाई सिर्फ दलों के बीच नहीं, बल्कि संगठन बनाम समर्पण की है। एक ओर ज़मीनी नेता कामेश्वर सिंह मुन्ना हैं, जो लगातार क्षेत्र में सक्रिय हैं, तो दूसरी ओर वे नाम हैं जो चुनाव आते ही सक्रिय होते हैं और पार्टी लाइन से हटकर काम करने में भी नहीं हिचकते।अगर एनडीए नेतृत्व इस बार जनभावना को समझकर, अनुभव और विश्वसनीयता को प्राथमिकता देता है, तो एकमा सीट जीतना केवल औपचारिकता रह जाएगी। वरना यह चूक पूरे गठबंधन पर सवाल उठा सकती है
एकमा का संदेश: निर्णय जनता के मन का हो
एकमा विधानसभा की लड़ाई केवल विधायक चुनने की नहीं, बल्कि यह तय करने की है कि क्या नेतृत्व जनता की इच्छा का सम्मान करता है या केवल राजनीतिक जोड़-तोड़ में उलझा रह जाता है। कामेश्वर सिंह मुन्ना की निष्ठा, सामाजिक सेवा और कार्यकर्ताओं के बीच गहरी पैठ, उन्हें एनडीए के लिए एक स्वाभाविक और मजबूत विकल्प बनाती है।अब फैसला नेतृत्व के पाले में है—क्या वे इस बार जनता की स्पष्ट मंशा को प्राथमिकता देंगे?
या फिर वही पुराने समीकरणों में उलझकर एक सुनहरा मौका गवां देंगे?
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