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मेकिंग ऑफ राम तेरी गंगा मैली


एक राधा, एक मीरा दोनों ने श्याम को चाहा
अन्तर क्या दोनों की चाह में बोलो
इक प्रेम दीवानी, इक दरस दीवानी..
साधारण से बोल। कम से कम साजिंदों के साथ बना संगीत। लेकिन, स्वर लता मंगेशकर का। और, इस आवाज ने ही इस गीत में असली कमाल कर दिया। रवींद्र जैन हिंदी सिनेमा के उन संगीतकारों में शुमार रहे हैं, जिनके बनाए गीत हिंदी सिनेमा के सौ सर्वश्रेष्ठ कालजयी गीतों में गिने जाते हैं। ये जानकर हैरानी होती है कि जो संगीतकार फिल्म ‘फकीरा’ का गाना ‘दिल में तुझे बिठाके’, फिल्म ‘अंखियों के झरोखों से’ का शीर्षक गीत और फिल्म ‘चोर मचाए शोर’ का ‘घुंघरू की तरह बजता ही रहा हूं मैं’, कंपोज कर चुका हो, उसका जिक्र हिंदी सिनेमा संगीत में शंकर जयकिशन, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल और आर डी बर्मन के साथ कम ही होता है। ऊपर जिस गीत की लाइनें मैंने यहां लिखी हैं, वे रवींद्र जैन की हैं। इन्हीं को गाते उन्हें राज कपूर ने सुना फिल्म ‘प्रेम रोग’ के बाद एक फंक्शन में और फिर उसी दिन ये गाना राज कपूर की सबसे चर्चित फिल्मों में से एक ‘राम तेरी गंगा मैली’ का गाना हो गया। राज कपूर ने रवींद्र जैन को वहीं साइन कर लिया।फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ अपने समय की एक सामाजिक, राजनीतिक और सामयिक सिनेमाई टिप्पणी है। फिल्म की नायिका गंगा के बहाने राज कपूर ने गंगा नदी का गंगोत्री से लेकर गंगा सागर तक का सफर दिखाया है और दिखाया कि कैसे मनुष्य के चरित्र के साथ साथ गंगा भी मैली होती जाती है। ‘राम तेरी गंगा मैली’ जब रिलीज हुई तब राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बने ज्यादा समय नहीं बीता था। राज कपूर की अपनी सिनेमा में ये खासियत रही है कि वह उस समय के सामाजिक चलन को सिनेमा के प्रतिबिंबों के सहारे बहुत ही सलीके से दर्शक के सामने रखते हैं और उसमें अपना एक मत भी जाहिर करते हैं। फिल्म को दो बार सेंसर किया गया। पहले ये फिल्म यू सर्टीफिकेट के साथ ही रिलीज हो गई थी, बाद में इसे दोबारा सेंसर करके यूए सर्टिफिकेट दिया गया है। वजह थी फिल्म का ये गाना और फिल्म में एक जगह मंदाकिनी का एक बच्चे को दूध पिलाने वाला सीन।

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