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#एक_युग_का_आदमी...

35 वर्षों के जीवन काल में एक युग हमने भी जी लिया।पांच पैसे के महत्व को हमने देखा। 10 20 पैसे में बचपन की सारी खुशियां जेब में समा जाया करती थी। गांव था गरीबी थी पर आनंद आज से लाखों ज्यादा लोगों में अपनापन तथा दूसरे के प्रति आस्था थी। बच्चे जूट का बोरा लेकर स्कूल जाया करते थे घर के पुराने कपड़ों का थैला किताबों का बैग हुआ करता था। शाम ढलते ही पूरा गांव खा पीकर सो जाता था कि बिजली थी नहीं जो पढ़ाकू बच्चे थे उनके दरवाजे पर लालटेन जलती थी और बच्चे उसके इर्द-गिर्द बैठकर पढ़ते थे। मोबाइल इंटरनेट जैसी चीज है नहीं थी पूरे गांव में एक आध आदमी के घर में ब्लैक एंड व्हाइट टीवी हुआ करती थी रामायण देखने के लिए हजारों की भीड़ जुटती थी। दिखवा नही था। आदमी की औकात उसके पैसे से नहीं नापी जाती थी। आपस में इतना प्यार था की पूरे गांव में किसी की तबीयत खराब हो जाए तो पूरा गांव उसके दरवाजे पर खड़ा होता था जिसके पास जो कुछ होता था मदद के लिए दौड़ा चला आता था किसी की बेटी की शादी होती थी तो एक माह पहले से ही उत्सव सा माहौल होता था जो जिस तरह से मदद कर सकता था मदद करता था। पहले इज्जत घर-घर की नहीं थी पूरे गांव की थी और लोग उसका पालन करते थे। मिट्टी के घर थे पर लोगो का इरादा पत्थरों से ज्यादा मजबूत था। बैलगाड़ी से हवाई जहाज तक का सफर में सब कुछ छूटता चला गया कुछ पाने की गरज से। शहर में पैसा था चकाचौंध थी पर अपनापन और सुकून नहीं। बाइस्कोप का आनंद बड़े मल्टीप्लेक्स में नहीं।जो आनंद लकड़ी की आंच पर बने पुआ पकवान में होता था वो आज बड़े रेस्टूटेंटो के व्यंजनों में नहीं। पहले एक घर हुआ करता था जहां पूरा परिवार रहता था सभी एक दूसरे के नजर के सामने होते थे समस्याएं आती थी तो सब बांट लेते थे आज घर फ्लैट बन गया है। दो से तीन कमरों में जिंदगी सिमट गई है।इंटरनेट क्रांति ने पूरी दुनिया को मुट्ठी में कर दिया है सुख दुख संताप सब कुछ हम सोशल प्लेटफॉर्म पर ही बाट और समेट लेते हैं सोचिएगा जरूर हम तब खुश थे या आज हैं।
#अनूप

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