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सामान्य वर्ग का दर्द जिसकी नहीं है दवाई?

वरिष्ठ पत्रकार अनूप नारायण सिंह की कलम से

देश में एक वर्ग है.......जो बेशक घोर गरीबी में जी रहा है। दाने दाने का मोहताज है। रोज कुआं खोद रोज पानी पी रहा है......लेकिन फिर भी अपने लिए .........बैटर ऑप्शन खोज रहा है। 
बेहतर विकल्प खोज रहा है। यह वर्ग दिन में किताबों में मुंह दिए सपनों की लड़ाई लड़ रहा है और रात में ढाबे पर खाना परोसता किसी अपार्टमेंट के बाहर गार्ड की नौकरी करता पार्ट टाइम जॉब करता सर्वाइवल की लड़ाई लड़ रहा है। गांव में खेत भी नहीं रहे गरीब होने का बोझ अलग से लाद दिया गया ना किसी प्रकार की सरकारी सहायता और ना किसी प्रकार का आरक्षण सामने की थाली इसलिए छीन ली गई क्योंकि वह गरीब तो है पर सामान्य जाति का है कोई उसके पक्ष में नहीं बोलता क्योंकि उसके अब वोट बैंक सरकार बनाऊं नहीं। मां-बाप आधा पेट खाकर बेटे को अफसर बनाने का सपना देखते हैं शहर में आने के बाद आटे दाल का भाव पता चलता है दिन किताबों में कटती है और शाम पार्ट टाइम जॉब में अक्सर पटना के सड़कों पर ऐसे युवा टकराते हैं जो ओला बाइक चलाते हैं आरक्षण से वंचित सामान्य घरों से हैं और आर्थिक स्थिति बेहद खराब है। अपने अंजाम से बेखबर नहीं है वे जानते हैं सफलता नहीं मिली तो वापस लौटने का भी कोई ऑप्शन नहीं बचा है। पटना आने के बाद सरकारी नौकरी मिले या ना मिले लेकिन मां-बाप छोटे भाई बहन रिश्तेदार नातेदार सबने सपने सजा रखें है बबुआ सरकारी साहब बनकर आएगा तो मिट्टी के घर को पक्का करवाएगा कुंवारी बहन के हाथ पीले होंगे छोटे भाई-बहन शहरो में रहकर प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी करेंगे मां का गिरवी गहना वापस आएगा पिता की बिकी या गिरवी जमीन जो पढ़ाई और कर्जे में बिक गई थी या बंधक थी। खाली नौकरी लेने का बोझा कंधे पर थोड़े होता है सपने इतने बड़े हो जाते हैं दर्द इतना ज्यादा हो जाता है कि उसे जीतना ही पड़ता है. आपने पढ़ाई के खर्च को निकालने के लिए ट्यूशन पढ़ाने से लेकर बैठक गार्ड की नौकरी ओला ड्राइवर तक का पार्ट टाइम जॉब करता है......खैर जीतता भी यही वर्ग है क्योंकि इसके पास हारने को .....कुछ भी नहीं है और जीतने को पूरी दुनिया,,,,,परिस्थिति जितनी भी विकट हो संघर्ष जारी रखना ही ....... जीवटता है।
#अनूप

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