अनूप नारायण सिंह
"वुमन बिहाइंड द लायन" पुस्तक के लेखक सहरसा के आरक्षी उप महानिरीक्षक IPS शिवदीप वामनराव लांडे हैं. इस पुस्तक के प्रकाशन का एक साल पुरे हो गए हैं. जिसका विमोचन पटना के चाणक्य होटल में स्वयं लेखक शिवदीप लांडे ने किया. उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि पटना निवासी सभी लोगों का बहुत प्यार और सम्मान मिला तथा निरंतर ही देश के अलग अलग जगहों से सन्देश मिले कि किस तरह से आप इस किताब में ख़ुद को महसूस कर पर रहे हैं. बिहार में सुपर कॉप के नाम से चर्चित आईपीएस अधिकारी शिवदीप लांडे ने अपनी पुस्तक में बड़ा खुलासा किया है. उन्होंने बताया है कि बचपन में एक बार अपने पिता की हत्या करने की सोची थी. उक्त अवसर पर शिवदीप लांडे ने पुस्तक के बारे में विस्तृत जानकारियां दीं. उन्होंने बताया कि इस पुस्तक में उन्होंने अपनी जीवनी, संघर्षों व इस मुकाम पर पहुंचाने वाले शख्सियत के बारे में लिखा है. शिवदीप लांडे ने बताया कि बचपन में उनके परिवार की जो स्थिति थी वह बेहद गुस्से में आ जाते थे. इतना ही नहीं एक बार तो उन्होंने अपने पिता की हत्या कर देने तक की बात सोच डाली थी. लांडे ने बेहद साफगोई के साथ कबूल किया कि उनके पिता सरकारी कर्मी थे लेकिन नशे के आदी थे. ड्रग एडिक्ट होने की वजह से परिवार की स्थिति खराब थी. पिता की नौकरी छूट जाने के बाद परिवार के हालात बिगड़ते चले गए. ऐसे में शिवदीप लांडे और उनके परिवार को मां ने ही संभाला. लांडे ने कहा कि अपनी मां से प्रेरित होकर उन्होंने न केवल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, बल्कि आईपीएस बन कर आज बिहार में पदस्थापित रहकर देश की सेवा कर रहे हैं.
गौरतलब है कि पटना के सिटी एसपी रहते हुए शिवदीप लांडे ने खुद की सिंघम वाली इमेज बनाई थी. महाराष्ट्र में कुछ दिनों तक सेवा देने के बाद शिवदीप लांडे एक बार फिर से बिहार में योगदान करने लौटे तो उन्हें सहरसा का डीआईजी बनाया गया है. फिलहाल वह अपने पद पर बने हुए हैं.शिवदीप लांडे बिहार कैडर के आईपीएस अफसर हैं, लेकिन पिछले पांच साल से महाराष्ट्र तैनात थे. शिवदीप लांडे जब बिहार में एसटीएफ के एसपी के पद पर तैनात थे, तब उनका तबादला महाराष्ट्र कैडर के लिए हो गया था. बिहार वापसी तक वह महाराष्ट्र एटीएस में डीआईजी के पद पर पहुंच चुके थे. उन्हें बिहार के सहरसा रेंज का डीआईजी बनाया गया है.
तेजतर्रार और जनता के बीच लोकप्रिय IPS शिवदीप लांडे ने अपनी जिंदगी पर एक किताब लिखी है. इसे नाम दिया है ‘वुमन बिहाइंड द लायन’. इसमें जिंदगी के कई अनसुने किस्सों को साझा किया. शिवदीप लांडे ने इस पुस्तक में अपने जीवन, जीवन के अच्छे-बुरे अनुभव, संघर्ष में मां का योगदान सबकुछ साझा किया है. लांडे ने केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर महाराष्ट्र कैडर में रहने के दौरान कोरोना काल में एक साल में यह किताब लिखी है. यह किताब बिहार, झारखंड और यूपी के बुक स्टॉल पर उपलब्ध रहेगा.लांडे ने कहा कि इस किताब में मैंने अपने जीवन को हुबहू उतारने की भरपूर कोशिश किया है. यह किताब यूथ के लिए काफी प्रेरणा देने वाली होगी. लांडे ने कहा कि बचपन में काफी कष्ट सहने के बाद मेरी मां ने मुझे बहुत समझा-बुझाकर पढ़ाया है. उन्होंने अपनी बुक अपनी मां को समर्पित की.
2006 में भारतीय पुलिस सेवा में चयनित शिवदीप लांडे ने बताया कि जब कक्षा वन में पढ़ते थे, तब दूसरे के पेरेंट्स स्कूल आते थे. उस समय काफी बुरा लगता था. मैं सोचता था, काश मेरा भी ऐसा ही एक परिवार होता. होश संभालने के बाद ऐसा लगता था कि उनके पिता उनकी मां के जीवन में राक्षस की तरह हैं. पिता से संबंध अच्छे नहीं थे. पिता रोज-रोज घर में लड़ाई करते थे. मारपीट करना इनका रोज का काम था. गुस्से में घर में रखे कपड़ों को जला देते थे. घर का माहौल कभी अच्छा नहीं रहता था, मेरे पिता की वजह से. इसलिए लांडे चाहते थे कि अपने पिता की हत्या कर कहीं भाग जाएं. ताकि उनकी मां को कोई परेशान ना करे. लेकिन उनकी मां हमेशा कहती थी, सब ठीक हो जाएगा.शिवदीप लांडे ने बताया कि इस पुस्तक में उन्होंने अपनी जीवनी, संघर्षों और इस मुकाम पर पहुंचाने वाले शख्सियत के बारे में लिखा है. कहा कि मेरी मां की मेरे जीवन में अहम भूमिका रही है. मैंने अपनी मां की बात मानी और आज लोगों की सेवा का मौका मिला है.उन्होंने कहा कि मैं अपनी मां को बहुत कुछ नहीं दे सकता, पर यह पुस्तक मां को समर्पित कर रहा हूं. हर सफल व्यक्तित्व के पीछे किसी का हाथ होता है. मेरे पीछे मेरी मां का हाथ है. यह किताब शिवदीप लांडे के पूरे जीवन का आइना है. अपने बचपन, अपनी गरीबी, अपने छात्र जीवन में उन्होंने किस तरह से संघर्ष किया यह सब कुछ इस किताब में है.
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