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शून्य से शिखर की ओर माझी के जननायक राणा प्रताप सिंह

राणा प्रताप सिंह एक ऐसा नाम जो सारण की राजनीति में बरगद के नई पौध की तरह बढ़ रहा है। सारण जिले के प्रसिद्ध शिक्षाविद्  डॉ कौशल सिंह के यहां 01 सितंबर 1977 को जन्में राणा प्रताप सिंह की प्रारंभिक शिक्षा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े शिशु विद्यामंदिर में हुई। उन्होंने राजनीति विज्ञान से M.A. किया है, साथ ही B.TECH और MBA डिग्रीधारी होने चलते क्षेत्र के लगभग सभी नेताओं में शैक्षणिक दृष्टि से एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। संघ के साथ उनके परिवार के तीन पीढ़ियों के जुड़ाव और इनके भी संघ के तरफ झुकाव ने इन्हें भाजपा से जोड़ दिया और राजनीतिक- समाजिक रूप से सक्रिय रहने की सकारात्मक क्षमता विकसित कर दी।
राणा प्रताप सिंह क्षेत्र के ऐसे नेता हैं जिनसे केवल उनके कार्यक्षेत्र मांझी विधानसभा ही नहीं बल्कि पूरे सारण जिले के युवाओं का जबरदस्त जुड़ाव है।  इसका सबसे मुख्य कारण है उनका सर्वसुलभ होना , आज जहां नेताओं में विआईपी कल्चर की बिमारी है वहीं राणा प्रताप सिंह अपने सर्वसुलभ व्यवहार के चलते  गैरराजनीतिक युवाओं और मध्यमवर्गीय परिवारों में काफी लोकप्रिय हैं। दूर दराज के गांवों में भी किसी भी मांगलिक कार्यक्रम में आप राणा प्रताप सिंह को आत्मिय अतिथि के रूप में देख सकते हैं। राजनीतिक क्षेत्र से अलग हटकर समाजिक संस्थाओं के कार्यों में सहयोग से लेकर लोगों के व्यक्तिगत विपदाओं में सहारा देने,लोगों की समस्याओं को अपने समस्या की तरह तरजीह देने की आदत ने राणा प्रताप सिंह को‌ एक ऐसा नेता बना दिया है,जिसके सहयोग के लिए ऐसे युवा भी हमेशा खड़े मिलते हैं जिनका सक्रिय राजनीति से कोई वास्ता तक नहीं है । इनके लोकप्रियता का आलम यह है की निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भी ये इस बार के विधानसभा चुनाव में लगभग  चौंतीस हजार वोटों के साथ उपविजेता रहे। एनडीए प्रत्याशी के वोटों को मिला दें ( वैचारिक समानता वाले वोट) तो इनकी विजय निश्चित थी। 
इसके पिछले विधानसभा चुनाव में भी इनकों क्षेत्र के कई स्थापित (पूर्व मंत्री/विधायक) नेताओं से अधिक वोट मिले थे। चुनाव बीतने के बाद भी क्षेत्र में समाज में इनकी उपस्थिति, जातिवादी विचारधारा से इत्तर सभी जातियों में इनकी लोकप्रियता, समाजिक कार्यों में इनका सहयोग,और युवाओं के साथ इनका सीधा जुड़ाव इन्हें क्षेत्र के अन्य नेताओं से अलग बनाता है और मांझी विधानसभा ही नहीं पूरे सारण जिले में इन्हें भविष्य के एक बड़े राजनीतिक कद के रूप में देखा जा रहा है।

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