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सिंदूर की नगरी में विराजती है माँ बाला त्रिपुर सुन्दरी...............

लखीसराय बिहार के महत्वपूर्ण शहरों में एक है।कुछ साल पहले तक ये शहर सिंदूर की नगरी के रूप मैं जाना जाता था ....आज भी देश भर में खपत होने वाले सिंदूर का 60 फीसदी ये शहर उत्पादित करता है।लखीसराय की स्थापना पाल वंश के दौरान एक धार्मिक-प्रशासनिक केंद्र के रूप में की गई थी। यह क्षेत्र हिंदू और बौद्ध देवी देवताओं के लिए प्रसिद्ध है।बड़हिया की विख्यात मां बाला त्रिपुरसुन्दरी जगदम्बा का मंदिर श्रद्घालुओं के आस्था और विश्वास का केन्द्र बिंदु है। ऐसी मान्यता है कि मां के दरबार में हाजिरी लगाकर सच्चे दिल से प्रार्थना करने के बाद लोगों की सभी मुरादें पूरी हो जाती है। मां के दरबार में आने के बाद तथा अभिमंत्रित जल पीने एवं मंदिर के कूप के जल से स्नान कराने के बाद सर्पदंश पीड़ितों को नया जीवन मिलता है। खासकर मंगलवार और शनिवार के दिन श्रद्घालुओं का मेला लगता है। नवरात्रा के अवसर पर तो श्रद्घालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। स्वप्न में आई थी मां, सुबह गंगा में बहती ज्योति मिली : जम्मू कश्मीर में मां वैष्णो मंदिर की स्थापना करनेवाले भक्त श्रीधर ओझा बड़हिया के ही मूल निवासी थे। हिमालय की कंदराओं में कई वषार्ें तक तपस्या करने तथा मां वैष्णों की स्थापना के बाद जब वे अपने पैतृक गांव बड़हिया वापस लौटे। बिषैले सर्प के प्रकोप से बड़हिया वासियों के लगातार मौत से द्रवित पंडित ओझा उन्हें इस संकट से त्राण दिलाने के उद्देश्य से गंगातट पर रहकर मां की आराधना शुरू की। कई महीनों की साधना के बाद एक दिन मां ने स्वप्न में उन्हें दर्शन देकर कहा कि कल सुबह एक ज्योति स्वरूपा खप्पर पर गंगा में बहते हुए मैं आऊंगी। उसे निकालकर पिंड के रूप में गंगातट पर स्थापित कर देना तथा एक कुआं खुदवा देना। मेरे आशीर्वाद तथा कुएं के जल से स्नान कराने के बाद सर्पदंश पीड़ित की मौत नहीं होगी। मगर इस अनुष्ठान के बाद तुम्हें जलसमाधि लेनी होगी। और भक्त शिरोमणि ने ले ली जलसमाधि : दूसरे दिन गंगास्नान करते समय उसी रूप में मां का पदार्पण हुआ।भक्त शिरोमणि ने जल से निकालकर विधि विधान से मां को स्थापित कर दिया। मां को दिये वचन को निभाते हुए उन्होने बड़हिया के विजयघाट पर जलसमाधि ले ली।

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