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तो क्या बिहार में भूमिहार वोटरों का झुकाव अब कांग्रेस की तरफ होगा?

देश की राजनीति में आप कुछ भी हो पर बिहार आते ही आप का वजन आप की जात के वोट बैंक से तोला जाने लगता है यह सत्य है कि कोई भी पार्टी किसी दूसरे जाति के कितने भी बड़े नेता को उसके जातीय समीकरण के खिलाफ वाले सीटों पर न विधानसभा और ना लोकसभा का चुनाव लड़ना सकती है और नया जोखिम उठा सकती है। बिहार की स्वर्ण जातियों में सबसे मुखर वोट बैंक वाली जाति संख्या बल के अधार पर राजपूतों के बाद भूमिहार समुदाय है। बिहार के कई लोकसभा और दर्जनों विधानसभा सीटों पर इस जाति का प्रभाव है यही कारण है कि स्वर्ण वोटरों को लुभाने के लिए इस जाति के फायर ब्रांड नेताओं की पूछ सभी पार्टियों में होती है कांग्रेस में कन्हैया कुमार के शामिल होते हैं यह कयास लगाए जाने लगा है कि बिहार के भूमिहार वोटरों पर डोरे डालने के लिए कन्हैया को बिहार कांग्रेस में एक बड़ी जिम्मेवारी तुरंत दी जा सकती है वैसे बिहार में कांग्रेस के खेवनहार बने अखिलेश सिंह भी भूमिहार बिरादरी से ही आते हैं और अभी कांग्रेस कोटे से राज्यसभा के सदस्य हैं.वैसे बिहार कांग्रेस में श्याम सुंदर सिंह धीरज सरीखे नेता आज भी मौजूद है बिहार में कांग्रेस अपने सहयोगी दलों के बैसाखी यों के सहारे चलने की आदी हो गई है एक अदद प्रदेश अध्यक्ष तलाशने में पार्टी को पसीने छूट रहे हैं बात प्रेमचंद्र मिश्रा अखिलेश सिंह मदन मोहन झा छत्रपति यादव राजेश राम विजय शंकर दुबे से आगे नहीं बढ़ पा रही है।कन्हैया कुमार के कांग्रेस में शामिल होने का कितना फायदा बिहार कांग्रेस को मिल पाएगा यह तो आने वाला समय बताएगा लेकिन फिलहाल कांग्रेस के पटना में कुंडली मारकर बैठे नेता इसी प्रयास में है कि कन्हैया राष्ट्रीय स्तर पर ही काम करें बिहार में उनकी एंट्री अभी नहीं हो पाए। कन्हैया कम्युनिस्ट विचारधारा के रहे हैं अब कांग्रेस में उनकी एंट्री होने के बाद उनका कम्युनिस्ट वाला क्रेज बरकरार रह पाएगा या नहीं इसको लेकर भी संशय है एक बेहतर वक्ता होने के साथ-साथ कन्हैया कुमार यह भी जानते हैं कि बिहार में आते हैं वह बेगूसराय नवादा जहानाबाद मुंगेर जैसे सीटों तक ही सीमित होकर रह जाते हैं। विरोधियों से ज्यादा उनके जात के नेताओं से ही उन्हें चुनौती मिलने वाली है। बिहार की राजनीति को करीब से देखने वाले जानकार भी इस बात को अच्छी तरह से समझते हैं कि बिहार में जातियों का जनतंत्र ही चलता है। यही कारण है कि जातीय जनगणना कराने को लेकर बिहार के सभी क्षेत्रीय दल कुछ ज्यादा ही उत्साहित नजर आ रहे हैं।

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